क्या भारत सिंधु जल संधि को रद्द कर सकता है?

 सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में बनी एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनाया गया था। इसके अनुसार,



  • भारत को तीन पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास और सतलुज) का पूर्ण अधिकार मिला,
  • और पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियाँ (झेलम, चेनाब, सिंधु) का ज़्यादातर पानी उपयोग करने का अधिकार मिला।

क्या भारत इस संधि को रद्द कर सकता है?

तकनीकी रूप से — हाँ, लेकिन ये आसान नहीं है।

1. संधि में Exit Clause नहीं है:

सिंधु जल संधि में यह साफ़ नहीं लिखा गया है कि कोई भी देश इसे एकतरफा रद्द कर सकता है। यानी भारत चाहे तो इसे तोड़ने की घोषणा कर सकता है, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत चुनौतीपूर्ण होगा।

2. अंतरराष्ट्रीय दबाव:

अगर भारत संधि तोड़ता है, तो पाकिस्तान इसे संयुक्त राष्ट्र या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जा सकता है। इससे भारत की छवि पर असर पड़ सकता है।

3. रणनीतिक दबाव बनाने के लिए संकेत दिए जा सकते हैं:

भारत ने पहले भी पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” 2016 और 2019 में हमले के बाद भारत ने इस संधि की समीक्षा करने की बात कही थी।




भारत क्या कर सकता है (कानूनी तरीके से)?

  1. पश्चिमी नदियों का अधिक उपयोग – भारत जल संग्रहण, बिजली परियोजनाओं और सिंचाई के ज़रिए पाकिस्तान को मिलने वाले पानी की मात्रा को घटा सकता है (जो अब तक बहुत कम उपयोग करता है)।
  2. Project निर्माण में तेजी – जैसे किशनगंगा और राटले डैम, जिससे पानी का flow बदला जा सकता है।
  3. संधि का पुनः मूल्यांकन – भारत विश्व बैंक के ज़रिए इस संधि में बदलाव या संशोधन का प्रस्ताव रख सकता है।


निष्कर्ष (Conclusion):


  • भारत एकतरफा सिंधु जल संधि को रद्द कर सकता है, लेकिन यह कूटनीतिक, कानूनी और वैश्विक स्तर पर बड़ा कदम होगा।
  • इसके बजाय भारत धीरे-धीरे अपनी जल-नीति बदलकर पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है, जो पहले से ही जल संकट से जूझ रहा है।


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